Fashle aise bhe honge

फ़ासलें ऐसे भी होंगे , ये कभी सोचा न था | सामने बैठा था मेरे , और वो मेरा ना था | वो की खुशबू की तरह , फैला था मेरे चारो ओर| मैं उसे मह्सूश कर सकती थी , पर छू ना सकती थी उसे | फासले ऐसे भी होंगे , ये कभी सोचा न था |

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